क्यूँ गढ़ रही है गेल कहानियां ? – अर्पणा

Posted: 2014/02/26 in hindi

मैं अर्पणा हूँ। पेशे से मैं एक लाइसेंस्ड अटॉर्नी हूँ और 1992 से अम्मा की भक्त हूँ। जब गेल ट्रेडवेल ने अम्मा का आश्रम छोड़ा, उस समय मैं हवाई में रह रही थी। यद्यपि मैं उसे बहुत कम जानती थी, मुझे शीघ्र ही मालूम हुआ कि वह हवाई रहने आ गई थी। जब मैंने सुना कि वह रहने के लिए घर तलाश रही है तो हमने उसे अपने घर मेम आ कर रहने को आमंत्रित किया। गेल आई और साल भर हमारे यहाँ रही। सारा साल उसे न तो किराया देना पड़ा, मुफ्त भोजन और रहने को मैत्रीपूर्ण वातावरण था। हम साथ रहते, खाना पकाते, बीच पर तैरने जाते, कुत्ते के साथ खेलते और दोस्तों के साथ समय बिताते। वह ड्राइविंग सीख रही थी और मैं उसे साथ की पार्किंग में ही सिखाती थी। कुल मिला कर वो हमारे परिवार के सदस्य जैसी हो गई थी। अम्मा की ही कुछ भक्त महिलाओं का एक दल था जिन्होंने गेल को हमारी मण्डली में सिर-माथे पर बिठा लिया था। हम सब मिल बैठ कर अम्मा के साथ बिताये दिनों की बातें किया करते थे और गेल अपनी मर्ज़ी से हँसते-खेलते इन गोष्ठियों में भाग लेती थी। आश्रम छोड़ने के बाद, उस एक साल में गेल ने कभी एक बार भी उस अन्याय, हिसा-अत्याचार के आरोपों का ज़िक्र तक नहीं किया जिनसे आज उसकी पुस्तक भरी पड़ी है! हमारी उस महिला मित्र-मण्डली में भी कभी उस यौन-उत्पीड़न की बात नहीं उठी जिसकी कहानी आज वो चौदह वर्षों बाद अपनी पुस्तक के माध्यम से दुनियां को सुना रही है!

आश्रम छोड़ने के बाद, उस एक साल में गेल ने कभी एक बार भी उस अन्याय, हिंसा-अत्याचार के आरोपों का ज़िक्र तक नहीं किया जिनसे आज उसकी पुस्तक भरी पड़ी है! हमारी उस महिला मित्र-मंडली में भी कभी यौन-उत्पीड़न की बात नहीं उठी जिसकी कहानी आज वो चौदह वर्षों बाद अपनी पुस्तक के माध्यम से दुनिया को सुना रही है!

गेल ने मुझे अलग से, आश्रम से अपने असंतोष की गाथा अवश्य सुनाई थी कि कैसे उसे अम्मा तथा स्वामियों का दुर्व्यवहार खलता था और वे लोग उसे वो आदर-सम्मान नहीं देते थे जिसकी वह, अम्मा की संस्था के सञ्चालन कार्य के आधार पर, अधिकारी थी। उसने मुझे बताया कि इसी कारन से अम्मा पर उसका श्रद्धा-विश्वास नहीं रहा था। मेरे साथ बिताये उस पूरे एक साल में और उसके बाद भी कभी कोई यौन-उत्पीड़न का आरोप हमारे सामने नहीं आया था, कोई इशारा तक नहीं, कुछ भी नहीं! मुझे सिर्फ़ यही महसूस हुआ कि वो एक ऐसी महिला है जो आध्यात्मिक पथ से भटक गई है। गेल ने मेरे साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं किया किन्तु मैंने उसे क्रूरतापूर्वक दूसरे लोगों की खिल्ली उड़ाते देखा था। यह देख कर मई परेशान हो गई थी। इस दौरान मेरी कई बार लक्ष्मी से भी बातचीत हुई जिसमें उसने इन सब घटनाओं के बारे में मुझसे तब भी बात की थी, जो आज उसने इसी ब्लॉग में लिखी हैं। गेल की क्रूरता सहने के बावजूद, लक्ष्मी को गेल के आश्रम छोड़ने का दुःख था और साथ ही यह आशा भी कि शायद वो वापस लौट आये! आश्रम से जाने के बाद, अम्मा के आश्रम ने उसकी आर्थिक रूप से भी सहायता की जिसे उसने ‘पेंशन’ का नाम दिया। मैं यह सब इसलिए जानती हूँ क्योंकि मैंने उसकी इस रकम को एक इन्वेस्टमेंट-एडवाइजर के अस जमा करने में सहायता की थी। मज़े की बात है कि गेल अपनी कहानी में इसका कहीं ज़िक्र नहीं करती। मुझे इस बात की भी हैरानी है कि वो लिखती है कि उसे एक भगौड़े की तरह भागना पड़ा और छिप कर रहना पड़ा था। सच तो यह है कि आश्रम से कोई भी गेल की खोज में नहीं आया था, सब जानते थे कि वह कहाँ रह रही है।


किसी ने उस पर आश्रम लौट आने के लिए दबाव नहीं डाला।

किसी ने उस पर आश्रम लौट आने के लिए दबाव नही डाला। स्वामी अमृतस्वरूपानन्द से उसने फ़ोन पर बात करके खुद उन्हें हमारे घर का फ़ोन नंबर दिया था। वर्ना आश्रमवासियों ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया था। जब ध्यानामृत स्वामी हवाई में भक्तों के साथ वार्षिक रिट्रीट के लिये आये तो हमने उस हफ्ते गेल के लिए किराए पर एक दूसरा घर लिया क्योंकि हमारे घर में बहुत से भक्त रहने आ रहे थे। रिट्रीट के इन दिनों में से एक दिन गेल ने सब भक्तों के लिए भोजन पकाया और हमने सबको परोसा। गेल ने अब ज्वेलरी बना कर बेचना शुरू किया और साथ ही कैटरिंग और पाक-कला की क्लासेज लेने का काम भी शुरू कर दिया। अपने इस नए जीवन से वह संतुष्ट नज़र आती थी। न जाने क्यों, अब क्यों वो इस प्रकार की कहानियाँ गढ़ने लगी है जिनका उसने आश्रम छोड़ने के बाद इतने सैलून तक कभी किसी से ज़िक्र तक नहीं किया, जबकि ऐसा कुछ सचमुच हुआ होता तो उस समय ताज़ी चोट के चलते वो ज़रूर किसी से कुछ कहती।


इन सब आरोपों में सच्चाई का ज़रा सा भी पुट होता तो भला उसे यह सब कहने के लिए इतनी लम्बी प्रतीक्षा करने की क्या ज़रुरत थी ?

अपनी पुस्तक में जो कुछ उसने कहा है, वो उस गेल से ज़रा भी मेल नहीं खता जो वो आश्रम छोड़ने के एक साल बाद तक थी। हाँ, आश्रम छोड़ने के बाद बाहर के जीवन में व्यवस्थित होने में कुछ कठिनाइयां अवश्य आईं और वो आश्रम के प्रति अपना रोष, आक्रोश भी प्रकट करती हुई देखी जाती थी लेकि यौन उत्पीड़न की या अम्मा अथवा स्वामियों द्वारा स्त्री-पुरुष के भेदभाव की बात उसने कभी नहीं की थी। इन सब आरोपों में सच्चाई का ज़रा सा भी पुट होता तो भला उसे यह सब कहने के लिए इतनी लम्बी प्रतीक्षा करने की क्या ज़रुरत थी?

गेल के साथ उस साल भर के सम्बन्धों तथा मेरे यहाँ आ जाने के बाद कैलिफ़ोर्निया में हुई उससे मुलाकातों के आधार पर, मैं यही कह सकती हूँ कि उसके इन आरोपों में सच्चाई का एक कतरा तक नहीं हो सकता। यही कारण है कि मुझे आगे आ कर अपने अनुभव और सत्य लिखने की आवश्यकता महसूस हुई है।

– अर्पणा

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